फिर मांझी का साथ, मझधार में छूटा है
फिर एक तारा आसमान से टूटा है
यूँ तो कई सपने होते हैं दिल बहलाने को
पर फ़िर एक बार सबसे प्यारा सपना टूटा है
आदतें हैं इस दिल की जो छूटती ही नहीं
कैसे जी पाउँगा उसके बिना, वो कभी पूछती ही नही
शाम की तलाश करता रहा ज़िंदगी भर
अब शाम कुछ यूँ मिली है के रात भी होती नही
टूटते तारों में ढूंढता हू अब अपने निशान
पर अंधेरो ने अब है ऐसा घेरा के तारे भी अब दिखते नही
लगती थी जो बातें दिल को भली
अब उन बातों से मन भी बहलता नही
एक मंज़िल थी जो खो गई, एक आस थी जो सो गई
बढ़ चुका हू अब इतना आगे के आगाज़ के निशान भी दिखते नही
टूट टूट के बिखर रहा हूँ अब रात दिन
पर जो हाथ देता था सहारा, वो भी अब है साथ नही
अकेले बढ़ना है अब इन राहों पे
रहना है अब सबसे होके जुदा
बस मिले इतनी ताक़त के चल सकूँ अकेले
कर दूं अपने आप को तबाह, बस हो न इतनी खता...|
फिर एक तारा आसमान से टूटा है
पर फ़िर एक बार सबसे प्यारा सपना टूटा है
आदतें हैं इस दिल की जो छूटती ही नहीं
कैसे जी पाउँगा उसके बिना, वो कभी पूछती ही नही
शाम की तलाश करता रहा ज़िंदगी भर
अब शाम कुछ यूँ मिली है के रात भी होती नही
टूटते तारों में ढूंढता हू अब अपने निशान
पर अंधेरो ने अब है ऐसा घेरा के तारे भी अब दिखते नही
लगती थी जो बातें दिल को भली
अब उन बातों से मन भी बहलता नही
एक मंज़िल थी जो खो गई, एक आस थी जो सो गई
बढ़ चुका हू अब इतना आगे के आगाज़ के निशान भी दिखते नही
टूट टूट के बिखर रहा हूँ अब रात दिन
पर जो हाथ देता था सहारा, वो भी अब है साथ नही
अकेले बढ़ना है अब इन राहों पे
रहना है अब सबसे होके जुदा
बस मिले इतनी ताक़त के चल सकूँ अकेले
कर दूं अपने आप को तबाह, बस हो न इतनी खता...|
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