Skip to main content

एक शख्स...

एक शख्स था अंधेरो में जलता हुआ
खुद से डरा हुआ, ज़माने से लड़ा हुआ
थका सा, कुछ घबराया सा
अपने ही ख्वाबों में उलझा सा
किनारों की तलाश में भटकता हुआ
Ek Shakhs by Ankesh Kumar Shrivastava
टूटे सपनों से कड़िया जोड़ता हुआ
चल रहा था भीड़ में भी तन्हा सा
वक़्त की लौ में तपता हुआ
देख गैरों की परछाईयाँ ठिठकता हुआ
हर मौसम हर दिन की तरह बदलता हुआ
शाम की पीली चादर ओढ़े वो चलता हुआ
आईना भी जिसे देख कर रोता सा लगे
पूछे किसने है तुझे ऐसा जला दिया
ना कोई था उसके पास जवाब
बस खामोशी से वो मुस्कुराता गया
यूँ अंधेरो में तो सीख लिया है जीना उसने
पर फिर भी रहती है एक आस
पलकें मून्द्ने का जी तो करता है
पर नींद ने छोड़ दिया है उसका साथ
तूफ़ानो को मुट्ठी में समेट लेता था जो कभी
आज बैठा है वो खाली हाथ
यूँ तो वक़्त ने खुशियाँ दी थी उसे सभी
पर फिर भी उसके हाथ लगा तो बस ख़ाक
अपनी ही परछाईयों में खोने लगा है
अपनी ही हसी में रोने लगा है वो
ढूंढता है जाने क्या बादलों के पीछे
ताकता रहता है आसमाँ को आँखों को मीचे
हथेलियों को काट कर बनाता है लकीरें
किस्मत को मोड़ना चाहता है अपने साथ
पर टूटे चिरागों से उजाले करे तो कैसे
जब खुद से ही हो ख़फा तो अपनी तक़दीर बदले तो कैसे...!!

Comments

Popular posts from this blog

Friends, Lover or Nothing

My life was going so simple No worries no tensions Suddenly everything changed

For My Love

We met by luck but, we are together by choice In my dreams also I can hear your voice You made my days more brighter

The Last Hug...!!

It's all coming back to me The nights, the days Those early morning fights