एक शख्स था अंधेरो में जलता हुआ
खुद से डरा हुआ, ज़माने से लड़ा हुआ
थका सा, कुछ घबराया सा
अपने ही ख्वाबों में उलझा सा
किनारों की तलाश में भटकता हुआ
टूटे सपनों से कड़िया जोड़ता हुआ
चल रहा था भीड़ में भी तन्हा सा
वक़्त की लौ में तपता हुआ
देख गैरों की परछाईयाँ ठिठकता हुआ
हर मौसम हर दिन की तरह बदलता हुआ
शाम की पीली चादर ओढ़े वो चलता हुआ
आईना भी जिसे देख कर रोता सा लगे
पूछे किसने है तुझे ऐसा जला दिया
ना कोई था उसके पास जवाब
बस खामोशी से वो मुस्कुराता गया
यूँ अंधेरो में तो सीख लिया है जीना उसने
पर फिर भी रहती है एक आस
पलकें मून्द्ने का जी तो करता है
पर नींद ने छोड़ दिया है उसका साथ
तूफ़ानो को मुट्ठी में समेट लेता था जो कभी
आज बैठा है वो खाली हाथ
यूँ तो वक़्त ने खुशियाँ दी थी उसे सभी
पर फिर भी उसके हाथ लगा तो बस ख़ाक
अपनी ही परछाईयों में खोने लगा है
अपनी ही हसी में रोने लगा है वो
ढूंढता है जाने क्या बादलों के पीछे
ताकता रहता है आसमाँ को आँखों को मीचे
हथेलियों को काट कर बनाता है लकीरें
किस्मत को मोड़ना चाहता है अपने साथ
पर टूटे चिरागों से उजाले करे तो कैसे
जब खुद से ही हो ख़फा तो अपनी तक़दीर बदले तो कैसे...!!
खुद से डरा हुआ, ज़माने से लड़ा हुआ
थका सा, कुछ घबराया सा
अपने ही ख्वाबों में उलझा सा
किनारों की तलाश में भटकता हुआ
टूटे सपनों से कड़िया जोड़ता हुआ
चल रहा था भीड़ में भी तन्हा सा
वक़्त की लौ में तपता हुआ
देख गैरों की परछाईयाँ ठिठकता हुआ
हर मौसम हर दिन की तरह बदलता हुआ
शाम की पीली चादर ओढ़े वो चलता हुआ
आईना भी जिसे देख कर रोता सा लगे
पूछे किसने है तुझे ऐसा जला दिया
ना कोई था उसके पास जवाब
बस खामोशी से वो मुस्कुराता गया
यूँ अंधेरो में तो सीख लिया है जीना उसने
पर फिर भी रहती है एक आस
पलकें मून्द्ने का जी तो करता है
पर नींद ने छोड़ दिया है उसका साथ
तूफ़ानो को मुट्ठी में समेट लेता था जो कभी
आज बैठा है वो खाली हाथ
यूँ तो वक़्त ने खुशियाँ दी थी उसे सभी
पर फिर भी उसके हाथ लगा तो बस ख़ाक
अपनी ही परछाईयों में खोने लगा है
अपनी ही हसी में रोने लगा है वो
ढूंढता है जाने क्या बादलों के पीछे
ताकता रहता है आसमाँ को आँखों को मीचे
हथेलियों को काट कर बनाता है लकीरें
किस्मत को मोड़ना चाहता है अपने साथ
पर टूटे चिरागों से उजाले करे तो कैसे
जब खुद से ही हो ख़फा तो अपनी तक़दीर बदले तो कैसे...!!
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