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Showing posts from 2017

बचपन, तू बहुत याद आता है|

न ऊँचाइयों का डर था, न पानी से खतरा न चिंता थी ज़माने की, न किसी बात का बुरा लगना वो भागते हुए दादी की गोदी में छुप जाना

अधूरा सपना

फिर मांझी का साथ, मझधार में छूटा है फिर एक तारा आसमान से टूटा है यूँ तो कई सपने होते हैं दिल बहलाने को